मंगलवार, 12 सितंबर 2017

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे -
ज़हर, सुकरात बन, पीना पड़े तो, मैं नहीं डरता,
किसी मंसूर के भी सामने, पानी नहीं भरता.
मुखातिब आग का दरिया, मैं उस में कूद जाता हूँ,
मगर लब खोलने की आज, मैं हिम्मत नहीं करता.

2 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. धन्यवाद सुशील बाबू. जिसके भी लब खुले, उसके परिवार वालों को उसके बीमा की रकम मिली और कभी-कभी सरकारी मुआवज़ा भी.

      हटाएं