बुधवार, 13 सितंबर 2017

हिंदी दिवस की पूर्व-संध्या पर



हिंदी दिवस

कितनी नक़ल करेंगे, कितना उधार लेंगे,
सूरत बिगाड़ माँ की, जीवन सुधार लेंगे.
पश्चिम की बोलियों का, दामन वो थाम लेंगे,  
हिंदी दिवस पे ही बस, हिंदी का नाम लेंगे.

जिसे स्कूल, दफ्तर से, अदालत से, निकाला था,
उसी हिंदी को अब, घर से औ दिल से निकाला है.
तरक्क़ी की खुली राहें, मिली अब कामयाबी भी,  
बड़ी मेहनत से खुद को, सांचा-ए-इंग्लिश में ढाला है.    

सूर की राधा दुखी,  तुलसी की सीता रो रही है,
शोर डिस्को का मचा है,  किन्तु मीरा सो रही है.
सभ्यता पश्चिम की,  विष के बीज कैसे बो रही है,
आज अपने देश में, हिन्दी प्रतिष्ठा खो रही है.

आज मां अपने ही बेटों में,  अपरिचित हो रही है,
बोझ इस अपमान का,  किस शाप से वह ढो रही है.
सिर्फ़ इंग्लिश के सहारे, भाग्य बनता है यहां,
देश तो आज़ाद है,  फिर क्यूं ग़ुलामी हो रही है.

2 टिप्‍पणियां:

  1. हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं । सुन्दर अभिव्यक्ति।

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    1. धन्यवाद सुशील बाबू. मैंने जानबूझकर हिंदी दिवस की पूर्व-संध्या पर इसे पोस्ट किया है ताकि मित्रगण हिंदी दिवस पर इसे साझा कर सकें.

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