शनिवार, 11 नवंबर 2017

अनार की कली



अनार की कली -
कौए की चोंच में अनार की कली वाली मसल हमने सुनी तो थी पर उसका साक्षात्कार करने का अवसर बहुत बाद में मिला था.
लखनऊ की एक पौश कॉलोनी में एक शानदार बंगले में किराएदार के रूप में शर्मा दंपत्ति रहता था. हमारे डॉक्टर शर्मा शक्ल सूरत के ठीक ठाक से किन्तु वज्र देहाती किस्म के प्राणी थे और श्रीमती शर्मा फ़ेमिना मिस इंडिया टाइप होश उड़ाऊ शक्शियत थीं. डॉक्टर शर्मा थे तो एक गरीब ब्राह्मण परिवार के पर पढ़ने में बहुत अच्छे थे. एम. एससी. में टॉप करते ही वो लखनऊ यूनिवर्सिटी में लेक्चरर हो गए थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जाने माने वकील सुकुल साहब को हमारे डॉक्टर शर्मा अपनी स्मार्ट बिटिया के लिए पसंद आ गए.
सुकुल साहब का मानना था कि इन्सान को अपनी जड़ और ज़मीन से हमेशा जुड़ा रहना चाहिए. उन्होंने इलाहाबाद में रहते हुए भी अपने गाँव के लोगों से और अपनी पुश्तैनी जागीर से खुद को जोड़कर रक्खा था. अपनी श्रीमती जी से सुकुल साहब पुरबिया बोली में ही संभाषण करते थे. ये बात दूसरी है कि उनकी अमेरिका रिटर्न बिटिया अगर हिंदी भी बोलती थीं तो उसमें आधे से ज़्यादा शब्द अंग्रेज़ी के होते थे.
सुकुल जी की बिटिया को डॉक्टर शर्मा बिलकुल पसंद नहीं आए थे किन्तु पिताश्री की दलीलों ने उन पर जादू का असर किया और फिर इस बेमेल विवाह के संपन्न होने में कोई बाधा नहीं रह गयी.
सुकुल साहब लम्बी चौड़ी हवाई जहाजनुमा गाड़ी में सवार होकर जब रिश्ता पक्का करने के लिए डॉक्टर शर्मा के गाँव पहुँचे तो उनके पिताजी अपने होने वाले समधी की शानो-शौकत देखकर सकते में आ गए. पिताश्री के साथ परम घाघ फूफाश्री भी थे जो कि सुकुल जी के वैभव से उतने प्रभावित नहीं लग रहे थे उन्होंने सुकुल जी के कान में कहा -
'वकील साहब आपसे शिमला के नर्सिंग होम के बारे में कुछ प्राइवेट में बात करनी है. ज़रा बाहर आइएगा.’
सुकुल जी इत्मीनान से बाहर आए फिर फूफाश्री को संबोधित करके कहने लगे –
‘हमारे होने वाले जमाई राजा के फूफाजी, आपकी बात सुनने से पहले हम अपनी एक बात कहेंगे. हमारे यहाँ लड़के के बाद सबसे ज़्यादा इज़्ज़त लड़के के फूफा को दी जाती है. आइए पहले गले मिलते हैं.’
इतना कहकर सुकुल जी ने अपने गले में पड़ी सोने की मोटी चेन फूफाश्री के गले में डाल दी फिर मुस्कुराते हुए बोले –
‘हाँ तो आप किसी नर्सिंग होम के बारे में कुछ प्राइवेट में बात करना चाह रहे थे. फ़रमाइए क्या कहना चाहते हैं?’
फूफाश्री अपने गले में पड़ी सोने की चेन को घुमाते हुए बोले –
‘समधी जी, छोडिए ये सब इधर-उधर की बातें. अब तो आपकी बिटिया हमारी हुई. हाँ, जैसे आपने लड़के के फूफा को सम्मान दिया है वैसा ही सम्मान आप लड़के की बुआ को दीजिएगा. बस, मुझे यही कहना है.’
सुकुल जी ने जवाब दिया -
‘अब लड़के की बुआ तो आई नहीं हैं. आप से प्रार्थना है कि नेग के ये इक्कीस हज़ार रूपये मेरी ओर से आप उनकी सेवा में प्रस्तुत कर दें.’
फूफाश्री ने अपनी ओर से रिश्ता पक्का होने पर अपनी मुहर लगा दी और अपने साले साहब को इशारा कर दिया कि वो मुंह खोल कर सुकुल जी से दहेज मांग लें.
अपने जीजा जी के इशारे पर पिताश्री ने अपनी समझ से दहेज की एक अकल्पनीय डिमांड सुकुल जी के सामने रख दी. सुकुल जी होने वाले समधी जी की डिमांड सुनकर कुछ देर तक सोचते रहे फिर मुस्कुराकर बोले –
‘पंडित जी, आप जितनी रकम दहेज में मांग रहे हैं उस से ज़्यादा तो मैं आपको टीके की रस्म में ही दे दूंगा.’
शाही अंदाज़ में हमारे शर्मा बन्धु की शादी हुई और एक ट्रक भर के दहेज का सामान लेकर शर्मा दंपत्ति ने लखनऊ के अपने किराये के बंगले में प्रवेश किया.
डॉक्टर शर्मा के बंगले का किराया ठीक उतना था जितनी कि उनकी तनख्वाह. दहेज में श्रीमती शर्मा अपने साथ अपनी वो नौकरानी भी लाई थीं जो कि उनके बचपन से ही उनकी सेवा करती आई थी. घर खर्च कैसे चलेगा, इसकी चिंता डॉक्टर शर्मा को नहीं करनी थी. सुकुल साहब ने बिटिया के नाम इतना पैसा फिक्स्ड डिपाजिट में डाल दिया था कि उसके मासिक ब्याज से ही उसके सारे शौक़ और ज़रूरतें पूरी हो सकती थीं.
हालांकि डॉक्टर शर्मा ने उच्च शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय से और श्रीमती शर्मा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी लेकिन डॉक्टर शर्मा के दुष्ट विद्यार्थी उन दोनों को क्रमशः ‘गुरुकुल कांगड़ी’ और ‘मिरांडा हाउस’ कहकर पुकारते थे.
श्रीमती शर्मा पंद्रह दिन में एक बार इलाहाबाद का चक्कर ज़रूर लगाती थीं और इस यात्रा के लिए वो हर बार टैक्सी बुलवा लेती थीं. डॉक्टर शर्मा जी टैक्सी का बिल तो नहीं भरना होता था पर अपनी श्रीमती जी की ऐसी यात्राओं का खर्चा सुनकर ही उनको चक्कर आ जाता था. श्रीमती शर्मा अपने भतीजे पर जान छिड़कती थीं. दो-चार बार डॉक्टर शर्मा भी उनके साथ इलाहाबाद गए थे. उन्होंने नोटिस किया कि उनकी सलहज अपने बेटे से उखड़ी-उखड़ी रहती थीं जब कि उनकी श्रीमती जी उसे अपने कलेजे से लगाए रखती थीं.
श्रीमती शर्मा को अब डॉक्टर शर्मा के मग्घेपन की आदत पड़ गयी थी और डॉक्टर शर्मा ने भी अपनी मेमनुमा श्रीमती जी के नखडों के साथ एडजस्ट करना सीख लिया था. डॉक्टर शर्मा को अपने फूहड़पन पर अपनी श्रीमती जी की झिड़की खाने का अभ्यास हो गया था और दूसरी तरफ पतिदेव के सुड़-सुड़ कर के चाय पीने पर और हाथ से सड़प-सड़प कर दाल-भात खाने पर अब श्रीमती शर्मा को भी कोई ख़ास आपत्ति नहीं होती थी.
अब उनके घर में नन्हा मेहमान आने वाला था. कुछ समय बाद श्रीमती शर्मा ने एक सुन्दर से नौनिहाल को जन्म दिया. शर्मा दंपत्ति का बंगला एक बार फिर उपहारों से भर गया और बंगले के गैरेज में एक कार भी खड़ी हो गयी. फूफाश्री और बुआ जी को इस बार भी भरपूर नेग मिले.
अपनी कार के आते ही श्रीमती शर्मा के इलाहाबाद के चक्कर और बढ़ गए. अब वो अपने नौनिहाल और अपनी नौकरानी को साथ लेकर ख़ुद कार ड्राइव करती हुई इलाहाबाद तक की यात्रा करने लगी थीं.
दिन चैन से गुज़र रहे थे. एक बार श्रीमती शर्मा फिर इलाहाबाद गईं थीं कि इलाहाबाद से ही उनकी भाभी यानी कि डॉक्टर शर्मा की सलहज का फ़ोन आया. फ़ोन पर बड़े रूखे से अंदाज़ में उन्होंने अपने नन्दोई जी को इलाहाबाद पहुँचने का आदेश दे डाला. डॉक्टर शर्मा को जब सलहज साहिबा ने यह बताया कि उन्होंने उनके पिताश्री और उनके फूफाश्री को भी इलाहाबाद तलब किया है तो उनके पांवों तले ज़मीन ही खिसक गयी.
डॉक्टर शर्मा बेचारे अगली ट्रेन पकड़कर इलाहाबाद पहुँचे. उनके पिताश्री और उनके फूफाश्री पहले ही सुकुल जी के बंगले में मौजूद थे. पिताश्री ने सपूत को देखा तो वो उन पर टूट पड़े.
‘जोरू के गुलाम डुबो दिया हमारे कुल का नाम? ऐसी कलंकिनी बहू लेकर आया है जो शादी से पहले ही एक बच्चे की माँ थी.’
फूफाश्री भी डॉक्टर शर्मा से ताना मारते हुए बोले -
‘बर्खुरदार, शिमला के नर्सिंग होम का किस्सा हमने पहले भी सुना था पर आज उस पर तुम्हारी सलहज ने सच की मुहर लगा दी.’
डॉक्टर शर्मा जब तक मुंह खोलें तब तक उनकी सलहज साहिबा आ धमकीं और गरज कर बोलीं -
‘जीजाजी, अब मैं किसी के पाप को अपना बेटा नहीं कहूँगी.
अपनी मेम साहब का पहला बेटा आपको मुबारक हो. अब इस बच्चे को भी आप अपने साथ लखनऊ ले जाइए.’
पिताश्री और फूफाश्री की गालियाँ खाकर डॉक्टर शर्मा पहले ही आहत हो चुके थे और उस पर सलहज साहिबा के तानों ने उनकी बेईज्ज़ती की रही सही कसर भी पूरी कर दी.
सबसे अचरज की बात यह थी कि अपने ही घर में सुकुल जी पूर्णतया निर्विकार होकर इस नौटंकी को देख रहे थे पर फिर वो एकदम से पिताश्री और फूफाश्री की तरफ़ मुख़ातिब हुए और बड़ी सख्ती से उन से बोले -
‘समधी साहिबान, आप सबकी बकवास मैंने सुन ली. अब चुपचाप बैठकर आप मेरी बात सुनिए.
आपको क्या लगता था कि आपके कौए जैसे सपूत की चोंच में अपनी अनार की कली जैसी बिटिया मैंने यूँ ही पकड़ा दी थी? आप लोगों के कच्चे घरों में इतना पक्का दहेज क्या मैंने यूँ ही भर दिया था? अगर शिमला के नर्सिंग होम वाली बात नहीं होती तो रिश्तेदारी की बात तो दूर, आप लोगों को मैं अपने बंगले में घुसने भी नहीं देता.’
फूफाश्री ने विनम्रता से कहा –
‘समधी जी, नाराज़ मत होइए. आइए प्राइवेट में कुछ बात करते हैं.’
सुकुल जी दहाड़े –
‘अब प्राइवेट में बात करने के दिन लद गए. आज से तुम लालची फटीचरों से मेरी रिश्तेदारी भी ख़तम. आज जब कि मेरे नाती की बात खुलकर सामने आ चुकी है तो फिर आज से तुम लोगों को हड्डी डालना भी बंद.’
पिताश्री ने सुकुल जी से हाथ जोड़कर कहा –
‘समधी जी इतना नाराज़ होना अच्छी बात नहीं है. हमारे जीजाजी ठीक कह रहे हैं. हम सब प्राइवेट में बैठकर मामला निबटा लेते हैं.’
सुकुल जी ने फिर सख्ती से कहा –
‘मेरे बहुत से मुवक्किल पेशेवर क़ातिल हैं. मेरे एक इशारे पर वो किसी का पूरा खानदान साफ़ कर सकते हैं. अब आप लोगों ने मेरी बिटिया के बारे में दुबारा अपनी चोंच खोली तो अपने अंजाम के बारे में सोच लीजिएगा. मैं अपनी बहू को भी उसकी गुस्ताखी सज़ा देता पर क्या करूँ? वो हमारे घर के चिराग को जन्म देने वाली है.
और हाँ, जाते जाते यह भी सुन लीजिए, अब आप लोग मेरे जमाई से भी मिलने की कोशिश मत कीजिएगा. मैंने उसे पूरी तरह ख़रीदने का पक्का इंतज़ाम कर लिया है.’
अगले क्षण पिताश्री और फूफाश्री सुकुल जी के बंगले से बाहर जा चुके थे.
जमाई राजा अपने पिताश्री और अपने फूफाश्री की बेईज्ज़ती होते हुए देख रहे थे पर ख़ुद को कौआ कहे जाने पर और अपने खरीदे जाने की बात सुनकर उनका खून खौल गया था लेकिन ससुरजी से अकड़कर बात करने की उनकी फिर भी हिम्मत नहीं हुई. उन्होंने मिमियाते हुए सुकुल जी से कहा -
‘पापा, आपने पिताजी और फूफाजी की इतनी बेईज्ज़ती की, मैंने चुपचाप सह लिया आपकी बेटी की नर्सिंग होम वाली बात भी मुझे बर्दाश्त हो गयी पर आपने मुझे जो कौआ कहा है और मुझे जो ख़रीदने की बात कही है उस से मेरा दिल बहुत दुखा है.’
सुकुल जी ने शांत होकर डॉक्टर शर्मा से कहा -
‘तुम्हारे बाप, फूफा और तुम्हारी इज़्ज़त तो टका सेर बिकती है. मेरी बात सुनकर तुम्हारा दिल कभी नहीं दुखेगा, इसकी गारंटी है. पहले ज़रा अपने ख़रीदे जाने की कीमत तो सुन लो.
मैंने लखनऊ में एक आलीशान बंगला बिटिया के लिए खरीद लिया है और तुम्हारे लिए हर महीने पच्चीस हज़ार का पॉकेट मनी फ़िक्स कर दिया है. अपनी तनख्वाह भी तुम अपने पास ही रखना. घर का खर्च चलाने की न तो तुम्हारी औक़ात है और न ही उसकी तुम्हें कोई ज़रुरत है. पर इन सब मेहरबानियों की शर्त ये है कि तुम मेरे बड़े नाती को अपना बेटा बना कर अपने साथ रक्खोगे, मेरे दोनों नातियों को एक सा प्यार दोगे और मेरी बिटिया को ख़ुश रक्खोगे. और हाँ, अपने घर वालों से अब तुम कोई सम्बन्ध नहीं रक्खोगे. अगर मेरी शर्तें तुम्हें मंज़ूर नहीं हैं तो रास्ता नापो.’
सुकुल जी के इस बेहूदे प्रस्ताव को सुनकर डॉक्टर शर्मा को इतना गुस्सा आया, इतना गुस्सा आया कि उन्होंने लपक कर उनके चरण पकड़ लिए.
उसी दिन शर्मा परिवार ने ढेरों उपहार के साथ लखनऊ के लिए प्रस्थान किया.
शर्मा दंपत्ति अपने लखनऊ वाले नए बंगले में अब अपने दोनों बेटों के साथ सुख और शांति से रह रहा है. डॉक्टर शर्मा की अपनी एक खुद की कार भी उनके नए बंगले में आ गयी है और सबसे सुखद समाचार यह है कि उन्होंने बिना सुड़-सुड़ कर के चाय पीना और बिना सपड़-सपड़ कर दाल-भात खाना भी सीख लिया है. 

8 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है। सच्ची बात जैसी लग रही है।

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  2. धन्यवाद सुशील बाबू. मेरे सच्चे संस्मरणों में कल्पना का पुट होता है और कहानियों में सच का. क्या करूँ, आदत से मजबूर हूँ.

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  3. बेमेल विवाह जब कभी मेल खा जाते हैं तो उनकी समझो नैया पार हो हो जाती है
    चलिए अंत भला तो सब भला
    रोचक प्रस्तुति

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    1. धन्यवाद कविता जी, आपने मेरी कहानी को अलग ढंग से देखा है. इस कहानी में बेमेल विवाह की खटास को प्यार में पागने के लिए पैसे की चाशनी का प्रयोग किया गया है जो कि सफल होता है.

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  4. प्रशंसा के लिए धन्यवाद मीनाजी. यह कहानी आधी हक़ीक़त है और आधा फ़साना है.

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  5. क्या बात है !!!!!!! आदरणीय गोपेश जी | अनिर्वचनीय !!!!! सराहना से परे| रचना मे सारे मामले तो गंभीर हैं -- कुछ भी हंसने लायक मामला न था पर आपकी भाषा और लाजवाब शैली ने मुझे खूब हंसाया और आपकी लेखनी का प्रशंसक बना दिया | माँ सरस्वती आपके लेखन की प्रांजलता बनाये रखे | बहुत ही रोचक और उम्दा लेखन !!!!!!!!!!!

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  6. इतनी ढेर सारी प्यारी-प्यारी प्रशंसा के लिए धन्यवाद रेनू जी. मेरी दोनों बेटियां मेरा लेखन देख कर कहती हैं कि उनके पापा ने शरारत करना अभी भी छोड़ा नहीं है. मेरा चार साल का नाती जब कोई शैतानी वाली हरक़त करता है तो उसकी माँ उसमें मेरी छवि देखती है.

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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