बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

नव-बुद्धं शरणम् गच्छामि

तपस्वी सिद्धार्थ को जब -
'दुःख है,
दुःख का कारण है,
दुःख का निदान संभव है,
दुःख-निदान का एक मार्ग है.'

इन चार आर्य सत्यों का ज्ञान हो गया तो वो भगवान बुद्ध बन गए.
मुझको भी कलयुग के चार आर्य सत्यों का ज्ञान हो गया है -
1. दुःख है (अच्छे दिन नहीं आए हैं),
2. दुःख का कारण है (अच्छे दिन न आने का कारण है),
3. दुःख निदान संभव है (अच्छे दिन लाना संभव है),
4. दुःख निदान का एक मार्ग है (अच्छे दिन लाने का मार्ग, 2019 के चुनाव में खोजना संभव है).
अब आप फिर भी मुझे नव-युग का भगवान बुद्ध न मानें और मेरी शरण में आएं तो यह आपकी नादानी होगी.

4 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छे दिन रोक कर रखे गये हैं। तिहार जेल की हवा खाने के पुण्य आपने नहीं किये हैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुशील बाबू ! उम्मीद पे दुनिया क़ायम है. 1976 में लखनऊ की मॉडल जेल (भले ही वहां MISA में बंद एक लड़के को इम्तहान दिलाने गया था)की हवा तो खा ही आया हूँ, तिहार की भी हवा भी खा ही लूँगा.

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मधुबाला और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद हर्षवर्धन जी. 'ब्लॉग बुलेटिन से जुड़ना मेरे लिए हमेशा गर्व का विषय होता है. मैं 'ब्लॉग बुलेटिन' को नियमित रूप से पढ़ता हूँ.

      हटाएं